- सौरभ तामेश्वरी
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं
चुनावी साल में विदिशा जिले की राजनीति लगातार गर्मा रही है। एक तरफ जहां कुछ समय पहले भारतीय जनता पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं के नाराज होने की खबरें सामने आई थीं तो वहीं एक बार फिर विदिशा जिले की कांग्रेस कमेटी में गुटबाजी की खबरें ने ज़ोर पकड़ लिया है। चुनाव से पहले काँग्रेस की अंतर्कलह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। हालात ऐसे हैं कि विदिशा विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी के विधायक पर पक्षपातपूर्ण तरीके से एकतरफा निर्णय लेने और उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं।
2 साल में कांग्रेस के 3 जिलाध्यक्षों ने दिया इस्तीफा
जिले में कांग्रेस के प्रदेश पदाधिकारी लगातार स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करने के प्रयास कर रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पिछले 2 साल में कार्यकर्ताओं की आपसी कलह के बीच 3 जिलाध्यक्ष इस्तीफा दे चुके हैं। हालांकि दो साल पहले गंजबासौदा विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक निशंक जैन को जब पार्टी ने जिले की कमान सौंपी थी तो उनके द्वारा संगठन को मजबूत करने के प्रयास किए गए, लेकिन जिले की अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र में उनके ऊपर भी गुटबाजी के आरोप लगे और सिरोंज विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने तो अपने ही जिलाध्यक्ष का पुतला फूँककर विरोध किया।
पेड वर्कर्स के भरोसे चला रहे काम
हालात यह है कि अपने कांग्रेस के स्थानीय विधायक शशांक भार्गव के खिलाफ उनकी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं ने विदिशा विश्राम गृह में एक बैठक आयोजित कराई, जिसमें कांग्रेस के कार्यकर्ता करतार सिंह ने विधायक पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वह आम कार्यकर्ताओं का सम्मान ना करके पेड़ वर्करों के माध्यम से पार्टी कांग्रेस चला रहे हैं।
अपने ही कार्यकर्ताओं पर सहयोग न देने के आरोप लगाकर जिलाध्यक्ष ने दिया इस्तीफा
अब एक बार फिर कांग्रेस की गुटबाजी तब सामने आई, जब वरिष्ठ कार्यकर्ता और जिलाध्यक्ष कमल सिलाकारी ने अपने ही कार्यकर्ताओं पर सहयोग ना करने के आरोप लगाते हुए पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व ने गुलाबगंज क्षेत्र के कद्दावर नेता राकेश कटारे को जिले की कमान सौंपी है।
भाजपा में भी दिख रही समन्वय की कमी
ऐसा नहीं है कि जिले में केवल काँग्रेस के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के बीच उठा-पटक मची हो, सत्ताधारी दल भाजपा भी जिले में इस समस्या से अछूती नहीं है, जिसका उदाहरण है बार-बार भारतीय जनता पार्टी के सिरोंज विधायक उमाकांत शर्मा की नाराजगी। शर्मा अपनी ही सरकार पर कई बार सवाल खड़े कर चुके हैं, उन्होंने जिले के प्रशासनिक अधिकारियों से परेशान होने की शिकायत जिले से लेकर प्रदेश पदाधिकारियों तक की है। इसी तरीके से शमशाबाद और बासौदा विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा दो धड़ों में बटी हुई नजर आती है। ठीक इसी तरीके से विदिशा विधानसभा क्षेत्र के अंदर भी भाजपा के नेता दो गुटों में आए दिन बंटे हुए नजर आते हैं, कई बार तो पार्टी के अंदर की यह कलह सोशल मीडिया में भी उजागर हो चुकी है।
शीर्ष नेतृत्व कर रहा गुटबाजी दूर करने के प्रयास
दरअसल, जिला कांग्रेस में मची उहापोह के बीच कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सक्रिय होकर इस गुटबाजी को दूर करने का प्रयास कर रहा है, जिसके चलते अप्रैल में जहां पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने विदिशा जिले में पहुंचकर जिले भर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद कर उनकी नाराजगी दूर करने के प्रयास किए थे, तो वहीं अब कांग्रेस के पर्यवेक्षक सुभाष चोपड़ा और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ने विदिशा पहुंच कर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का एक सम्मेलन आयोजित किया और इसमें एकजुट होकर काम करने की बात कही। वहीं भाजपा संगठन के शीर्ष नेतृत्व के द्वारा इन कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत चर्चा कर के नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
जिले की इस स्थिति को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि विदिशा जिले की पांचों विधानसभा सीट पर इस वक्त भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता जहां जमीन पर जुटकर चुनावी मोड में काम कर रहे हैं, तो वहीं जिले के कांग्रेसी नेता अभी भी आपसी खींचतान में उलझे हुए हैं। बहरहाल, अब आने वाले समय में देखना होगा कि कौन सियासी दल अपनों को मनाकर आगे बढ़ता है और किसकी बगावत किसे भारी पड़ती है।