12 साल तक अपने ही बच्चे पर बाप का कोई अधिकार नहीं। ये है हमारे देश का कानून और इसी कानून के कारण एक बाप को अपने ही बेटे का 'अपहरण' करना पड़ता है। जिसे वेब मीडिया में बैठे तिलंगे लिख रहे हैं कि अपहरणकर्ता से अलग होते हुए रोने लगा बच्चा।
खैर, तिलंगों और तिलचट्टों की समस्या यह है कि उन्हें पेजव्यू चाहिए। उसी से उनकी नौकरी और कंपनी की कमाई होगी। लेकिन जो गंभीर समस्या है वह यह कि आखिर अपने ही बच्चे पर बाप का कोई अधिकार क्यों नहीं है?
जिस तनुज छाहर की यह कहानी है उसने दूसरा विवाह किया था। लव मैरिज। जो संयोग से उसकी दूर की रिश्तेदार भी थी। लड़की के घर वाले इस विवाह से खुश नहीं थे। लिहाजा दोनों में कलह बढी और अलगाव हो गया। एक दिन तनुज जयपुर पहुंचता है और चोरी से अपने 11 महीने के बेटे को लेकर भाग जाता है।
11 महीने का बच्चा संभालना कोई छोटी बात नहीं है। लेकिन बेटे के मोह ने उसे मां बाप दोनों बना दिया। यूपी पुलिस में हेड कांस्टेबल की नौकरी छोड़ साधु बन गया। अपने बच्चे को लेकर धार्मिक नगरी में भटकने लगा। झोले में उस बच्चे की जरूरत का सारा सामान रखता। दूध की बोतल। कपड़े। इस तरह तनुज ने डेढ साल बिता दिये। अब बच्चा समझने लगा था और अपने बाप को पहचाने भी लगा था।
इधर दूसरी पत्नी ने पुलिस केस कर रखा था इसलिए पुलिस अपहरणकर्ता बाप की तलाश कर रही थी। पुलिस ने पकड़ा और बाप से ही उसका बच्चा बरामद कर लिया। जिसके बाद तिलचट्टों ने खबर लिख दी कि अपहरणकर्ता से बच्चा बरामद हुआ।
अब कानूनन वह अपने ही बेटे को 12 साल तक अपने साथ नहीं रख सकता। मिल भी तब सकता है जब उसकी मां इजाजत दे। 12 साल बाद बच्चा चाहेगा तो बाप के साथ जाएगा वरना मां के पास ही रह जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कानून ये मानता है कि मां ही बच्चे की कस्टोडियन है। इसलिए बाप कुछ नहीं कर सकता।
ये सब कानून बहुत धूर्ततापूर्ण तरीके से बनाये गये हैं जिसे जस का तस बीपीसी में भी कॉपी कर लिया गया है। इन कानूनों का मकसद भारत की परिवार व्यवस्था को तोड़ना है। मेल गार्जियन को कमजोर करके महिलाओं को अकेले भटकने के लिए छोड़ देना है। यही उनकी आजादी है। यही उनके जीवन की सफलता। कानून वही काम कर रहे हैं और मूर्ख मीडिया उस आग में घी डाल रहा है।
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